किस देवता की आराधना करें
अपने मन की अभिलाषाएं पूरी करने के लिए देवी-देवताओं की पूजा का विधान है। किस देवी-देवता की पूजा से क्या फल प्राप्त होता है, इस बारे में श्रीमदभागवत के द्वितीय स्कंध के तृतीय अध्याय में आया है कि जो मनुष्य अपने सत्य की वृद्धि चाहता है, उसे ब्रह्मा जी की आराधना करनी चाहिए। जो यश की वृद्धि चाहे, उसे नारायण जी की और जो विद्या की वृद्धि चाहे, उसे शिव जी की आराधना करनी चाहिए। जो धन चाहे, उसे लक्ष्मी की, जो स्त्री सुंदर पति चाहे, उसे पार्वती की, जो सुंदर पत्नी चाहे, उसे उर्वशी की, जो वीर्य की वृद्धि चाहे, उसे चंद्रमा की, जो इंद्रियों को पुष्ट रखना चाहे, उसे इंद्र की, जो तेज की वृद्धि चाहे, उसे अग्नि देव की, जो राज्य पद चाहे उसे मनु की, जो बड़ा कुटुंब चाहे, उसे पितरों की, जो अधिक संतान चाहे, उसे दक्ष प्रजापति की, अन्न और हाथी घोड़ों की चाहत रखने वाले को अष्टवसु की, जो कामदेव की वृद्धि चाहे, उसे रुद्र की, अधिक बल चाहने वाले को इलादेवी की, सौंदर्य चाहने वाले को गंधर्वों की, शत्रु का नाश चाहने वाले को निर्ऋति राक्षस की पूजा करनी चाहिए।
जिस व्यक्ति को संसार की किसी भी वस्तु की इच्छा न हो, उसे परमप्रभु कृष्ण चंद्र जी की आराधना करनी चाहिए। उनकी कृपा से मनुष्य के सभी कार्य अपने आप पूर्ण होते हैं।
श्रीमदभागवत् के द्वितीय स्कंध के दशम् अध्याय में कहा गया है कि शरीर की दसों इंद्रियों में देवताओं का वास है। मुख में अग्नि, जीभ में वरुण, कान में दिशा, नाक में अश्विनी कुमार, हस्त में इंद्र, नेत्र में सूर्य, लिंग में मित्रावरुण, गुद्य में यम, पैरों में विष्णु और बुद्धि में ब्रह्मा का निवास है। इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मुख से प्रसाद सेवन करना चाहिए। जीभ से प्रभु का भजन करना चाहिए। कानों से हरि कथा सुननी चाहिए। नाक से प्रभु को अर्पित किये जा चुके फूलों को सूंघना चाहिए, हाथ से दान देना चाहिए, नेत्रों से देव मंदिरों में प्रभु के दर्शन करने चाहिए, पैरों से तीर्थ यात्रा करनी चाहिए, बुद्धि से प्रभु स्मरण करना चाहिए।