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भूकंप भुज में ही क्यों?

अप्रैल 2001
भूवैज्ञानिकों के अनुसार भूमिगत सतहों में हलचल होने से भूकंप आते हैं। भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई कारगर उपकरण अभी तक विकसित नहीं हो पाया है।

भूकंप के ज्योतिषीय कारण ढूढ़ने पर पाते हैं कि मंगल भूमि का कारक है। शनि भूमि के अंदर से निकलने वाली वस्तुओं, जैसे वायु आदि का कारक है। राहु धरती कंपन करता है और तोड़-फोड़ का कारक है। मंगल और शनि में पूर्ण दृष्टि संबंध हो, या स्थान संबंध हो, या वे एक दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में आ जाएं, तो भूकंप की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके साथ यदि पंचम और अष्टम भाव भी पीड़ित हो रहा हो, तो भूकंप से नुकसान की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। भारत में पिछले 100 वर्षों में आये मुख्य भूकंपों का ज्योतिषीय विवरण यहां दिया जाता हैः

भुज की कुंडली का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि मंगल की आठवीं दृष्टि शनि पर पड़ रही है। लग्नेश शनि चतुर्थ भाव में वृष राशि में गुरु के साथ है और मंगल नवम भाव में तुला राशि मंे है। अष्टमेश बुध लग्न में शुक्र के साथ शनि की कुंभ राशि में है। राहु पंचम भाव में मिथुन राशि में है। कुंभ लग्न के लिए सूर्य और गुरु मारक हैं। मारक गुरु की दृष्टि अष्टम भाव पर है। त्रिकोण में पाप ग्रह त्रिकोण को पीड़ित कर रहे हैं। प्रथम भाव पीड़ित होने से स्थान का स्वरूप ही बदल गया। पंचम भाव पीड़ित होने से आबादी का नुकसान हुआ। नवम भाव पीड़ित होने से उन्नति में बाधा आयी। चतुर्थ भाव पर मंगल की दृष्टि पड़ने से आवास की समस्या उत्पन्न हुई। मारक सूर्य के द्वादश भाव में होने से खर्चों का बोझ बढ़ा। उस समय की कुंडली के हिसाब से मंगल की महादशा में शनि की अंतर्दशा चल रही थी और राहु की प्रत्यंतर दशा में शनि की ही सूक्ष्म दशा थी।

अब प्रश्न यह उठता है कि भूकंप का प्रकोप भुज पर ही सर्वाधिक क्यों हुआ? दिल्ली या किसी अन्य स्थान पर क्यों नहीं? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए दिल्ली और भुज की उस समय की नवांश कुंडलियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं।

दोनों नवांश कुंडलियों का अध्ययन करने पर पाते हैं कि भुज में राशि का प्रथम नवांश था और दिल्ली में राशि का चतुर्थ नवांश था। प्रथम नवांश शुभ नहीं माना जाता। भुज की नवांश कुंडली में मंगल अष्टम भाव और शनि चतुर्थ भाव में आने से ही भूकंप का सर्वाधिक असर भुज पर हुआ। नवांश कुंडली में सूर्य उच्च का होने पर भी अच्छे फल नहीं दे पाया। क्योंकि सप्तम भाव में राहु के साथ होने से सूर्य को ग्रहण सा लग गया, इसी कारण पड़ोसी राज्यों और विदेशों से सहायता पहुंचने में देरी हुई और अधिक जन हानि हुई। मारक गुरु भी रोग स्थान में आ गया, जबकि दिल्ली की नवांश कुंडली में सूर्य और राहु चतुर्थ भाव में हैं, जिससे लोगों में भय तो व्याप्त हुआ, पर जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। नवें भाव में चंद्र हो, तो पंचम भाव के ग्रह भी सहायता पहुंचाते हैं। शनि स्वराशि में लग्न में आ गया। इस कारण दिल्ली में कोई नुकसान नहीं हुआ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि मंगल, शनि और अष्टम भाव का संबंध भूकंप का कारण बना। मंगल तुला राशि में हो, या शनि स्वराशि में हो, तभी भूकंप की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।