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ज्योेतिष का ज्ञान किसे मिलेगा?

मार्च 2004
ज्योतिष शास्त्र वेदों का ही एक अंग है। वेद, धर्म शास्त्र और पूजा-पाठ का ज्ञान देव गुरु बृहस्पति की कृपा के बिना नहीं हो सकता। विद्यादायक देव गुरु बृहस्पति का जातक को ज्योतिषी बनाने में बहुत बड़ा योगदान है।

किसी जातक की जन्मपत्री में गुरु का बलवान होना ही उस व्यक्ति की सफलता का बहुत बड़ा कारण होता है। गुरु की कृपा से व्यक्ति को बुद्धि, विवेक, आरोग्यता, धन, संतान और विद्या मिलते हंै। बृहस्पति के बलवान होने पर व्यक्ति धर्म प्रचारक, पुजारी, शिक्षक और सबका भला करने वाला होता है। गुरु लग्न में बैठा हो, तो बली होता है। वह चंद्रमा के साथ बैठा हो, तो चेष्टाबली होता है। चंद्रमा से केंद्र में गुरु स्थित हो, तो गज केसरी योग बनता है, जिससे व्यक्ति बलवान, धनी, दीर्घजीवी, प्रतिष्ठित, बुद्धिमान बनने तथा लक्ष्य प्राप्त करने में सफल होता है। लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में होने से व्यक्ति की रुचि ज्योतिष शास्त्र की ओर होती है।

बिना बुध के बुद्धि नहीं मिलती है और बिना बुद्धि के ज्योतिषी नहीं बन सकते। यदि बुध बलवान हो, तो जातक लेखक, लेखाकार, गणितज्ञ और ज्योतिषी बन सकता है। केंद्र, या त्रिकोण में बुध हो, तो अच्छे फल मिलते हैं। जैसे ग्रहों के साथ बुध बैठता है, वैसे ही फल देता है। सूर्य के साथ बैठने से बुधादित्य योग बनाता है, जिससे जातक को बुद्धिमान, सब कार्यों में निपुण और सुखी बनाता है। बुध व्यक्ति को मानसिक शक्ति, तर्क शक्ति, कल्पना शक्ति और निर्णय तक पहुंचने की योग्यता देता है। बुध यदि पाप ग्रहों के साथ बैठा हो, तो अशुभ फल देता है। बुध यदि चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो निष्फल होता है।

गुरु और बुध के साथ-साथ यदि शनि की भी कृपा दृष्टि हो जाए, तो जातक अवश्य ही ज्योतिषी बनता है। शनि 7 ग्रहों में से सबसे दूर है। यह बहुत लंबा चक्कर काटता है। शनि में व्यापकता है। एक सफल ज्योतिषी में व्यापक दृष्टिकोण होना ही चाहिए। उसे सभी संभावनाओं पर विचार कर के ही बोलना चाहिए। शनि के बलवान होने पर व्यक्ति का यश दूर-दूर तक फैलता है। शनि अष्टम् भाव का कारक है, जिसे रंध्र स्थान भी कहा जाता है; रंध्र अर्थात् खड्डा। एक ज्योतिषी ही भविष्यरूपी अंधकार को देख सकता है। पराज्ञान को देने वाला शनि ही है। वैज्ञानिक कार्य और शोध कार्य करने के लिए शनि और अष्टम् भाव का बलवान होना आवश्यक है। यदि कोई जातक शोध कार्य करना चाहता है, तो उसकी अष्टमेश, या अष्टम भावस्थ ग्रह की दशा-अंतर्दशा होनी चाहिए। गुरु, बुध और शनि बलवान होने चाहिए। जब शनि लग्न से केंद्र में स्वराशि, या उच्च राशि में हो, तो शश योग बनाता है, जिसमें जातक नेता, मंत्री, या प्रधानमंत्री भी बन सकता है। उसकी ख्याति चारों दिशाओं में फैलती है।

ज्योतिष का कार्य बुद्धि प्रधान कार्य है। लग्न में शीर्षोदय राशियां होने पर जातक की रुचि बुद्धि प्रधान कार्य की ओर होती है। लग्न से ही जातक के स्वरूप, विवेक, मस्तिष्क, देह और आत्मा का विचार किया जाता है। लग्नेश की स्थिति और बलाबल के अनुसार इस भाव से जातक की जातीय उन्नति और कार्यकुशलता का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ज्योतिषियों की कुंडलियों का अध्ययन करने पर यह तथ्य सामने आया कि लग्नेश चंद्र, मंगल, या बुध होने पर ज्योतिषी बनने की संभावना बढ़ जाती है।

कुछ अन्य योग इस प्रकार हैं:

  • चंद्रमा सौम्य राशि में हो।
  • चंद्रमा वृष राशि में हो।
  • गुरु, बुध, या शनि की महादशा या अंतर्दशा हो।
  • गुरु, बुध, शनि, या राहु लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में हो।
  • गुरु और बुध का संबंध हो।
  • गुरु नवम् भाव में हो।
  • लग्न में शीर्षोदय राशियां हों।
  • लग्नेश चंद्र, मंगल, या बुध हो।
  • लग्न से दशमेश का नवांशपति गुरु, बुध, या शनि हो।
  • गुरु और शुक्र केंद्र में हों।
  • नवम भाव, या नवमेश से गुरु का संबंध हो।
  • अष्टम भाव, या अष्टमेश से मंगल का संबंध हो।
  • दशम भाव, या दशमेश से गुरु, बुध, या शनि का संबंध हो।

निष्कर्ष

यदि कोई व्यक्ति ज्योतिषी बनने में रुचि रखता है, तो उसकी कुंडली में लग्न, पंचम और नवम् भाव बलवान होने चाहिए, क्योंकि लग्न से व्यक्तित्व, सोच-समझ, रुचि-अरुचि, निष्ठा, गुण, धर्म, स्वास्थ्य और कार्य के प्रति समर्पण भावना का विचार किया जाता है। पंचम भाव से विद्या, बुद्धि, निर्णय शक्ति, क्षमता, निपुणता, योजनाबद्ध कार्य, विचार मंथन और गंभीरता का विचार किया जाता है। नवम् भाव से भाग्य, सौभाग्य, प्रसिद्धि, साधना और धर्म का विचार किया जाता है।

ज्योतिष के अधिकारी कौन हैं? इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथ बृहत्पराशर होरा शास्त्र के प्रथम अध्याय के श्लोक 7 में आया है:

शान्तय गुरुभक्ताय सर्वदा सत्यवादिते।

आस्तिकाय प्रदातव्यं ततः श्रेयो ध्यवाप्ययति।

अर्थात्, शांत चित्त वाले, गुरु के प्रति भक्तिभाव से युक्त, सदैव सत्य बोलने वाले, ईश्वर में विश्वास रखने वाले शिष्य को ही यह शास्त्र सिखाना चाहिए। इसी से कल्याण होता है।

एक ज्योतिषी में क्या-क्या गुण और योग्यताएं होनी चाहिएं इसके बारे में बृहद्पराशर होरा शास्त्र में आया है:

गणितेषु प्रवीणो यः शब्दशास्त्रे कृतज्ञमः।

न्यायविद् बुद्धिमान देशदिक्कालक्षोे जितेन्द्रियः।।

ऊहोपोह-पटु होरा स्कंध श्रवण सम्मतः।

मैत्रेय सत्यतां यानि तस्य वाक्यं न संशयः।।

अर्थात्, एक ज्योतिषी को गणित में निपुण होना चाहिए। उसे शब्द शास्त्र का पूरा ज्ञान होना चाहिए। उसे न्यायविद्, बुद्धिमान, जितेंद्रिय, देश काल का ज्ञाता और विवेकवान होना चाहिए। उसमें परस्पर विरोधी फल दृष्टिगोचर होने पर उनका सही विश्लेषण करने की क्षमता और अपनी बात को अच्छी तरह समझाने की योग्यता होनी चाहिए। जिस व्यक्ति को होरा स्कंध का पूर्ण ज्ञान हो, उसकी बात पर संशय नहीं करना चाहिए।

यदि कोई जातक ज्योतिषी बनना चाहता है, तो उसे अपने आप में निम्न गुणों को विकसित करना चाहिए और कुंडली पर इन 12 नियमों को लागू कर के देखना चाहिए:

  • क्या गुरु लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में है?
  • क्या बुध लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में है?
  • क्या राहु लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में है?
  • क्या शनि लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में है?
  • क्या गुरु त्रिकोण में है?
  • क्या गुरु नवम भाव में है?
  • क्या गुरु और बुध में कोई संबंध है?
  • क्या गुरु और शुक्र केंद्र में हैं?
  • क्या लग्न में शीर्षोदय राशि है?
  • क्या लग्नेश चंद्र, मंगल, या बुध है?
  • क्या गुरु, बुध, या शनि की महादशा और अंतर्दशा है?
  • क्या दशमेश गुरु, बुध, या शनि के नवांश में है?

उपर्युक्त 12 में से यदि 3 नियमों का उत्तर सकारात्मक आता है, तो व्यक्ति की रुचि ज्योतिष शास्त्र में होती है। यदि 5 उत्तर सकरात्मक हों, तो व्यक्ति मध्यम श्रेणी का ज्योतिषी हो सकता है। यदि 5 से 8 उत्तर सकारात्मक हों, तो व्यक्ति उत्तम श्रेणी का ज्योतिषी हो सकता है। यदि 8 से अधिक नियम लागू हांे, तो व्यक्ति अत्योत्तम ज्योतिषी बन सकता है।